धुरि में लथेडाईल देहि
चिकई अउर कबड्डी कै जोश
गुल्ली डंडा कै टांड
आईस- पाईस कै
छुपम छुपी वाला खेल
कहवा चलि गईल उ दिन
शायद दुरे जाके भी
हमरे मन में आपन याद छोड़ी गईल
रही रही के कसक जगावे खातिन ।
अमवा के बौर लागल डारी
बरबस खींच लेले मनवा के
अपने टिकोरवा की ओरि
अउर मनवा दौड़ पड़ेला
अमवा के बगिया की ओरे
जईसन बचपन में दीवाना रहल ।
अमरुदवा के डारी डारी
खेलत लखनी अउर कलैया
खेतवा के मेडी मेडी दौड़त
संझवा के दौड़
कुछो नाहि भुलाईल
सालन बाद भी शहर में रहि के
शहर कब्बो रास न आईल ।