गाँवों का भारत

Sunday, September 9, 2012

ना अबकी ऊ गाँव मिलल

गली मिलल गाँवन कै सुनी
मेंड़ रहल खेतन  कै टूटल
सब रहल  बदलल-बदलल
ना  अबकी ऊ गाँव मिलल।

न मिलने अबकी रामू काका
काकी चूल्हा फूँकत रहल 
पतोहिया बईठ अंगना में
फेसबुक पे चैटिंग करत मिलल।

बुढ़िया - बुढवा ओसरा में बईठल
आखिर दिन गिनत रहल 
अउर बेटवा  मेहरारू संगे
बाईक पे शहर घुमत मिलल।

आल्हा बिरहा कै मशहूर गवैया
फेंकू कैंसर संग बाजी जीतत रहल
मगर शीला , छाया  अउर  चमेली से
लोकगीत में बाजी हारत मिलल।

जगह-जगह दारू कै  अड्डा
होत अन्धेरा खुलत रहल
सिगरेट के कश में बरबाद
अबकी होत  बचपन मिलल।

गईल जमाना डी-डी  वन के
न केहू चित्रहार देखत रहल
हर घरे  के देवारी पै अबकी
डिस टीवी के छत्ता लटकल मिलल।

इनके काटत उनके पीटत
नेतन जैसन राजनीत रहल
ख़तम मिलल भाई चारा अबकी
शहरीपन कै  भूत चढ़ल मिलल ।


Sunday, May 27, 2012

कुछ तस्वीरें गाँव की




सार्वजनिक स्नानागार 


सृजन- शिखर 

एक शाम 

तलैया 

पुश्तैनी घर 
आजमगढ़ 
ये कट गया कटहल 

बगीचे के आम 
कटहल 
एक  क्लिक लालू के ढाबे का 
ग्रामीण अपने काम  पर 
गाँव का ताल 
एक और शाम 

Monday, March 12, 2012

आल्हा के दीवानगी

                एक गो छोट सस्मरण  अपने बचपन कै शेयर कईल चाहत बानीं यहवां बचपन के दिन आजमगढ़  के सगड़ी तहसील के एक छोट से गाँव में बीतलउ बेला में कौनो शादी - बियाहे  और कर- परजा में नौटंकी, बिरहा और आल्हा का बड़ा चलन रहे खाली पता चली जाये  की कौने गांवें में आल्हा - बिरहा के प्रोग्राम बटे , बस जईले के जुगत भिंडावल जाईल जात रहे
              उ समय में गुल मुहम्मद " बीपत " के आल्हा बड़ा जोर मचवले   रहल बगल के एक गांवें  मंझारियां में उनकर आल्हा आईल रहल हमार मन ना करत रहल मगर कुछ दोस्त लोग हमके चढ़ा देहने और  उ रात चुपके  से हमहू निकल पड़नी दोस्त लोगन के चढवले में आईके आल्हा सुने खातिन हम बिना केहू से घरमे में बतवले गईल रहनी जब भिन्सहरा के हम हम घरे पहुचनी तै पता चलल की भर राते हमार खोजहरिया भईल हवे  कि कहवां गईनेउलटे दोस्त लोग मजा लेके डरावे लगने की अब बाप के हाथे चमड़ा आज लाल जरुर होई जाई
                            खट - खट तेगा बोले सन- सन बाजे तलवार
                             सब भागे  इधर उधर किसी से सही न जाये ई मार
लगत रात भर जवन आल्हा चलल वोकर ई शब्द अब  हमरे कपारे में भी बाजे लागल बहुत देर तक हम अपने बाप से छिपल रहनी सामना कईले  के हिम्मत न रहल   शायद अम्मा के समझौले कै परिणाम रहल होई  या बाप कै गुस्सा कुछ देर बाद शांत हो गईल रहल होई जब सामना भईल तै पिटाई तै  ना भईल पिताजी अपने समने  बैठा के समझौने   कि अगर गईला तै बता के जाये के चाहत रहल रात भर सब परशान रहल तुहरे खातिन   अउर जेकरे संघे गईल रहला ऊ कुल अच्छा लईका ना हवे इ बात एकदम से हमरे मन में  बैठ गईल ऊ दिन से हम जहाँ भी जाई , घरे जरुर बता के जाईं  शायद उनकर ई प्यार से समझवाल ही रहल  कि जवन हमार कदम उनके नज़र में गाँवे के कुछ  बदमाश लईकन के संघे बिगड़त  लगत रहल ऊ वो  लईकन से दुरी बना के चले लागल . ई सीख बादे  में बहुत कामे आईल

              आल्हा-बिरहा , रामलीला अउर नौटंकी के प्रति दीवानगी बादे में भी बनल रहे अगर आप लोग भी ई दीवानगी कै सुनल चाहत होई तै निचे लिंक पे क्लिक कईके डाऊनलोड  कै सकिला        


माड़ोगढ़ की लड़ाई  - भाग-१
माड़ोगढ़ की लड़ाई - भाग-२  

आल्हा बिवाह- भाग -१ 
आल्हा बिवाह- भाग -२  


Saturday, February 4, 2012

कलेंडर

कलेंडर 
नईखे होला 
खाली एक गो कलेंडर 
तारीख देखले के अलावा 
पिताजी के खातिन
ई कलेंडर होला 
राशि मुहूरत 
अउर मूल-विचार
जनले कै साधन
सबके शादी-बियाहे कै लेखा जोखा 
मेहरारू खातिन
ई कलेंडर होला
बरत तालिका 
दुधे कै हिसाब 
गैस बदलले कै दिन 
लईकन खातिन 
ई कलेंडर होला
स्कूले कै किरिया- कलाप
अउर दोस्तन कै जन्मदिन
याद रखले कै साधन 
हमरे खातिन होला
ई कलेंडर
मोबाइल नम्बरन कै जखीरा
नेट पैक अउर मोबाइल 
रिचारज कईले कै दिन
अउर ढेर गो जरुरी बातन खातिन 
मुफत में एक गो रफ कापी 
ई तरीका से साल के आखिर में 
आवत- आवत ई कलेंडर
बन जाला एक गो जरुरी दस्तावेज.