ऊ खुद आपन सीनवा में
छुपावत रहि गईल
जिनगी भर
गमे के पहाड़
बकिन तै हमके कईले बडियार
हँसाई हँसाई के
तनिको न होखे देहले
ई बात के एहसास
ऊ रोई रोई के भी
अगर हंसल तै
खाली हमके हंसावय खातिन
जब जब हम गिरत रहनी
छोड़ी देति रहल ऊ माई
बिलकुल हमके अकेल
हर दाई हम कोशिश कईनीं
उठी के खड़ा भईले के
अउर जब जब हम
उठी के खड़ा भईनीं
ऊ हमार पियार से
माथा चुमि लेत रहल
अउर आज अगर हम खड़ा बानी तै
खाली ऊ माई के बदौलत
सच्चो में ई पियार आज सालन बाद भी
नईखे भूलाला ।।
सच्ची बात कहती कविता कि आज हम खडे हैं तो अपनी माई के बदौलत पर उसी को कितना दुख पहुँचाते हैं हम ।
ReplyDeleteबहुत भाव भीनी प्रस्तुति ।
अपनी जबान में मां को याद करने की मिठास ही कुछ और होती है.
ReplyDeleteई जो बात ड़उआ कहनी ह से सौ फ़ीसद सही बाटे।
ReplyDelete“माई के हाथ होला!”
माई शक्ति बाड़ी। एही से कहल जाला कि माता कब्बो कुमाता ना हो सकेली।
ReplyDelete....शानदार प्रस्तुति
ReplyDeleteउपेन बाबू!
ReplyDeleteसृजन सिखर में केतना दिन से सन्नाटा देखला के बाद आझ राऊर घरे के रास्ता भाया फेसबुक भेंटा गईल!! महाराज ऐसन लुकैला के काउन बात रहे कि आपन घर जेवार के बतावल जरूरी नइखे बुझाइल!!
हाई कबिता पर कमेन्ट खातिर सब्द नइखे.. माफ करीं.. आँख के लोर थमात नइखे!!
@ सलिल साहब, बस ऐसेहिन थोडा समयाभाव के चलत व्यस्तता रहल . ई प्यार के खातिन बहुत बहुत शुक्रिया.
ReplyDeleteबेहद उम्दा भाव लिए हुए इस रचना के लिए आपका बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteजी, माँ का प्यार और त्याग को नमन ..
ReplyDeleteअपनी भाषा में .. अच्छा लगा. कभी फ़ैज़ाबाद आना हो तो ईमेल से
ReplyDeleteसूचित करें.. मिलना चाहूँगा.
एक नज़र मेरी वेबसाइट पर भी डालें.
1. www.belovedlife-santosh.blogspot.com(हिन्दी कविता)
2. www.santoshspeaks.blogspot.com (My Thoughts about life)
बहुत ही भावुक रचना... माँ की महिमा को शब्द हमेशा कम पड़ते हैं.
ReplyDeleteआपका पोस्ट अच्छा लगा .मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति| धन्यवाद|
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